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Tuesday, August 30, 2011

yaad series .... god knows which part


Taken at Sundernagar (near Mandi) 14th August 2011
रात की छम सी ख़ामोशी
आसमान सितारे ओढ़े पहाड़ो पर बैठा है
पानी में ही कभी दिखता कभी ओझल होता चाँद|

सिर्फ चिनार से बातें करती  ये हवा है,
या फ़िर से तेरी याद है?

picture (C) aparnamudi, aparnamudi@gmail.com
A Poem Written sometime in 2006  so pardon the sentiments
Currently listening to: chandrabindu
Currently reading: Fashion and textile Books 
Recently watched : zindagi na milegi dobara (yes i am pretty ashamed of it) and finally Dark Knight

Wednesday, May 04, 2011

chaand aur barish

बारिश आज झगड़ रही है मुझसे खूब, 
rain on my lense, just very strong drizzle
रंग लगाना है मेरे चेहरे पर,
कुछ make -up सा लगाना है, 
के कोई न पहचाने, 
बस धुंधली सी आँखें ही दिखे सबको मेरी!

कुछ जल सी जाती है, 
उन सारे romeo 's  के प्यार भरे ख़त में 
मेरा ज़िक्र देख देख कर,
सोचती है की सारे मेरे लिए ही लिखे गए है | 

और मैं उसके सामने खड़ा हो जाता हूँ, 
के उसके आँचल में, 
धुंधला के खो जाना अच्छा लगता है
इस झूठ को मैं टाल जाता हूँ,
और जकड लेता हूँ उसे अपने चारो ओर, 
के हर romeo अपनी juliet को रात के अँधेरे में मिल लेगा|
आढ़ में उसकी जलन के, 
उसी के आंसुओ के कुछ बूंदों में भीगते हुए
धुंधली रात में पहली बार चूमेंगे एक दुसरे को|

Tuesday, December 14, 2010

suraj

हर रात रुक जाती हूँ मैं यही आके,
हर रात बैठती हूँ इसी पेड़ के नीचे,
Right outside my house in Delhi, Dec 2010
कापते पत्ते मेरे पैरों के आस पास आके,
गरम होने कि कोशिश करते हैं|

हर रात उनसे मैं दिन भर का दुखड़ा कहती हूँ,
और वह जाड़े की शिकायत करते हैं,
थोड़ी सी धुंध खाते हैं, थोडा शब् पीते हैं,
फ़िर रुकते हैं, राह देखतें हैं उसका|

वह आये, तो नज़र भर देखके ही,
आँख मूंदु...
के रूठ के बैठा है जाने कब से,
कल आये न आये|

मेरे दोस्त बैठके अपने में,
मेरा ठट्ठा उड़ाते हैं|
मैं वही लेट जाती हूँ... समुन्दर ओढ़ के...

कल तड़के ही उठाना है,
नहीं तो सारा दिन बादल कुछ नहीं करने देगा,
मेरा मज़ाक बनाएगा...
के चाँद बस अब नींद में ही चूमता है मुझे...

image (C) copyright: aparna mudi
nokia 7210 , supernova

Monday, November 09, 2009

onion rings and more(part of the chand series)

एक अकेला चाँद ढूंढता रहा,
घंटो...
इस उस गली में, 
किसी बादल के पीछे से झांकता,
तो कभी किसी तारे से पूछता...

किसी न किसी गली में तो बैठी होगी वो,
गुस्से में सिस्किया लेती| 

झगड़के दूर नहीं गयी होगी,
वहीँ कहीं इंतज़ार कर रही होगी,
कि अब आके बैठेगा चाँद उसके पास,
और दुनिया भर कि चांदनी
उसके गोद में डाल देगा,
उसे मनाने की खातिर|

Monday, September 03, 2007

suraj se chup rahi hoon...
woh chand ko jaake bata dega ki
kal shaam bhar main roi
chupke andheron mein...
par parchaiyon ne use bataya..
kaise pani ke katre unpe girke bikhar jaate
kaise ab chand aake chumke le nahi jaat unhe aur

ya shayad ab suraj ko hi mujhse pyaar ho
ab woh hi dard na dekh sake mera
ab woh shayad chand ko kuch nahi kahega
ya shayad kabhi mile bhi na usse
dhalti hui shaam ke baad suraj udaas ho jaata ho
mujhe chukar dekhna chahta ho...

raat ko jab main fir se ro padu
to chand ko ab parak nahi padta..
uski chandni mehakti hai
ab nadiyon ki chamak mein
saahil pe chamkati hai woh roshni
meri pyas ....pyas hi reh jaati hai

Sunday, December 24, 2006

winter sun

आज सूरज सोने का नहीं
चाँदी का है...
शायद चाँद से, अब वो भी जलने लगा हो
दिन भर अकेले उब गया हो
अन्धेरियों में रहने की तमन्ना जगी हो आज....
चाँदी का रंग लगा के
निशा को समझाने की कोशिश कर रहा है
की आज वोह उसके साथ रहे ....
अपने सितारों के ओढ़ने में छिपके आये....
निशा हसी...
बोली ..."चाँद तो बन जाओगे,
चांदनी की ठंडक कहाँ?
वोह दाग कहाँ?"

Sunday, November 19, 2006

chand...

aaj chand ko jee bhar ke dekha
akele taro mein, mere haal sa
kuch lavs chura ke laya thha tumhare hoton se
aur thodi andekhi si yaadein bhi...
humari duri ka ek payamar..
samajh nahi aata hai ki bakshish mein kya du!
chandni ko hi choom loon?
ki woh teri khushbu laati hai
ya apna sab luta doon
ki chand mere sab ka ehsaas dilati hai......
ek chand hi hai jo tumhara mera khwab bankar
lipat ta hai hum dono se
ke aaj mujhe fir se judai mein bhi
chain se neend to aaye
im feeling a lil left out....maybe iv forgotten how to love...or maybe i dont believe in the ideals of it

Saturday, April 08, 2006

tarasta hoon....

कहीं खयालों खोई हुई है तु
और उन खोई हुई आंखों में
मेरा प्यार ढूंड रहा हूं।
अपने में ही कुछ बोलती है,
और हस देती है।
फ़िर उसी हसीं में ही तेरे आसू भी छलक आते है।

तु मुझे गगन में खोजती है,
मैं तेरी देहलीज़ पे बैठा हूं।
अकेले तो बैठी है तु,
पर मेरी नज़र तेरे साथ है।
पर्दे की आढ़ से तुझे देख रहा हूं।
इतने दिनो बाद तेरी आँखों में,
वो प्यार देखा जिसे
देखने को तरस गया था।
गगन से सिर्फ़ तेरे लिये ही तो उतरा हूं,
तारो से लड़ा,
तेरे नर्म कापते होटों के खातिर।
तेरी ज़ुल्फ़ों की उलझन को जो सुलझना था।
तेरी पलकों पे रुके हुए आँसू अब बस टपकने वाले है।
उन्हे हथेली में सहेज लेना है।

ये एक ही रात की दूरी,
तुझे कितना पास ले आई मेरे,
कि अब तेरी सांसें मेरे होँठ छू जाती हैं।
तेरी आँखें बन्द है अभी भी,
और तेरी खुशबू समाई है।
यह जुदाई भी रास है मुझे।

Thursday, March 30, 2006

kabhee

Alone in the dark

कल रात चांद से बहस हो गई।
चांद ने कहा आजकल मैं उसे निहारती नही,
कभी कभी पलट के भी नही देखती।
और इसी झड़प में कुछ भला बुरा भी कह गयी मैं।
शायद बुरा लगा हो उसे।

आज चान्द आया ही नही मेरे गगन में।
बहुत देर इन्तेज़ार किया मैंने।
उस वरान्दे के कोनें में,
जहां वो मुझे रोज़ रात मिला करता।

अब अकेले बैठे, मनाने के तरीके सोच रही हूं,
क्या कहके मेरे चांद को समझाऊं?
क्या कहके उसे अपना प्यार जताऊं?
कैसे बताऊं कि उस्से ज़्यादा प्यारा मुझे और कोई नही?
कल मिलने को कहूंगी तो क्या वो आयेगा?
शायद...
मुझसे मिले बिना उसे भी तो नींद कहां आयेगी!?

चंदा मेरे, कल भी तेरा यहीं इन्तेज़ार करून्गी।
आना ज़रूर...
तेरे प्यार को मन तरसता है।
तेरी खुशबू की प्यास अब और नही सही जाती।
कम से कम अपनी एक झलक ही दिख़ला जाना।
इतनी भी क्या नाराज़्गी?
कि अपनें ही प्यार को अकेला कर दिया?
who is the moon and who is the lover that remains to be seen.......