Thursday, March 30, 2006

kabhee

Alone in the dark

कल रात चांद से बहस हो गई।
चांद ने कहा आजकल मैं उसे निहारती नही,
कभी कभी पलट के भी नही देखती।
और इसी झड़प में कुछ भला बुरा भी कह गयी मैं।
शायद बुरा लगा हो उसे।

आज चान्द आया ही नही मेरे गगन में।
बहुत देर इन्तेज़ार किया मैंने।
उस वरान्दे के कोनें में,
जहां वो मुझे रोज़ रात मिला करता।

अब अकेले बैठे, मनाने के तरीके सोच रही हूं,
क्या कहके मेरे चांद को समझाऊं?
क्या कहके उसे अपना प्यार जताऊं?
कैसे बताऊं कि उस्से ज़्यादा प्यारा मुझे और कोई नही?
कल मिलने को कहूंगी तो क्या वो आयेगा?
शायद...
मुझसे मिले बिना उसे भी तो नींद कहां आयेगी!?

चंदा मेरे, कल भी तेरा यहीं इन्तेज़ार करून्गी।
आना ज़रूर...
तेरे प्यार को मन तरसता है।
तेरी खुशबू की प्यास अब और नही सही जाती।
कम से कम अपनी एक झलक ही दिख़ला जाना।
इतनी भी क्या नाराज़्गी?
कि अपनें ही प्यार को अकेला कर दिया?
who is the moon and who is the lover that remains to be seen.......

2 comments:

delhidreams said...

there's no moon, except you...

Aparna Mudi said...

u flatter me sweetu!
well i wish i really was the moon....
atleast to my focal point