Saturday, April 08, 2006

tarasta hoon....

कहीं खयालों खोई हुई है तु
और उन खोई हुई आंखों में
मेरा प्यार ढूंड रहा हूं।
अपने में ही कुछ बोलती है,
और हस देती है।
फ़िर उसी हसीं में ही तेरे आसू भी छलक आते है।

तु मुझे गगन में खोजती है,
मैं तेरी देहलीज़ पे बैठा हूं।
अकेले तो बैठी है तु,
पर मेरी नज़र तेरे साथ है।
पर्दे की आढ़ से तुझे देख रहा हूं।
इतने दिनो बाद तेरी आँखों में,
वो प्यार देखा जिसे
देखने को तरस गया था।
गगन से सिर्फ़ तेरे लिये ही तो उतरा हूं,
तारो से लड़ा,
तेरे नर्म कापते होटों के खातिर।
तेरी ज़ुल्फ़ों की उलझन को जो सुलझना था।
तेरी पलकों पे रुके हुए आँसू अब बस टपकने वाले है।
उन्हे हथेली में सहेज लेना है।

ये एक ही रात की दूरी,
तुझे कितना पास ले आई मेरे,
कि अब तेरी सांसें मेरे होँठ छू जाती हैं।
तेरी आँखें बन्द है अभी भी,
और तेरी खुशबू समाई है।
यह जुदाई भी रास है मुझे।

1 comment:

Saurabh said...

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