Sunday, December 24, 2006

winter sun

आज सूरज सोने का नहीं
चाँदी का है...
शायद चाँद से, अब वो भी जलने लगा हो
दिन भर अकेले उब गया हो
अन्धेरियों में रहने की तमन्ना जगी हो आज....
चाँदी का रंग लगा के
निशा को समझाने की कोशिश कर रहा है
की आज वोह उसके साथ रहे ....
अपने सितारों के ओढ़ने में छिपके आये....
निशा हसी...
बोली ..."चाँद तो बन जाओगे,
चांदनी की ठंडक कहाँ?
वोह दाग कहाँ?"

2 comments:

Anonymous said...

ummm
would love to hear frm u again!
luv ya
take care
Pheebes

meet_me said...

m back here again....
i dooooo hope n wish to see u dear...
luv ya