आज सूरज सोने का नहीं
चाँदी का है...
शायद चाँद से, अब वो भी जलने लगा हो
दिन भर अकेले उब गया हो
अन्धेरियों में रहने की तमन्ना जगी हो आज....
चाँदी का रंग लगा के
निशा को समझाने की कोशिश कर रहा है
की आज वोह उसके साथ रहे ....
अपने सितारों के ओढ़ने में छिपके आये....
निशा हसी...
बोली ..."चाँद तो बन जाओगे,
चांदनी की ठंडक कहाँ?
वोह दाग कहाँ?"
2 comments:
ummm
would love to hear frm u again!
luv ya
take care
Pheebes
m back here again....
i dooooo hope n wish to see u dear...
luv ya
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