Thursday, December 06, 2012

प्रतिघात

Picture of a dead baby wild camel
somewhere in the Sam Dunes, Rajasthan...
(c) Aparna Mudi, January 2011

माया के पास अब लफ्ज़ नहीं बाकि है
मानी पूछने को अब रहा नहीं है कुछ भी 
सिर्फ सन्नाटे है।

दिन उगता है,
अपने सारे काम निपटा कर फिर डूब जाता है।

सुबह से शाम बस फिरती रहती है, 
अपने में गुनगुनाती हुई।

उसका सोना अब थोडा फीका सा पड़ने लग गया है।
बेड़िया ही थी बस वोह, उनका न कोई मतलब था।
न तब न आज।

सिर्फ एक दिन की चकाचौंध दिवाली...
दिवाली पर कितने ही दिए जला लो, 
चाँद को लौटा के नहीं ला सकता कोई।
दोज़ख की देहलीज़ पर  जो दिया रखा था,
वह अल्स्तरो को जलाता हुआ घर जला गया है।

अब मायूसी औंधे मूँह पड़ी हुई है,
राख में से लम्हे, कुछ पुराने ख़त छानती।
चाँद पिघल के उबल रहा है दीवारों पर,
रोशनिया जलते कोयले सी लाल होक अब बुझ रही है

और माया,
माया गले में प्यार बांधकर,
लटक रही है जले हुए खूँटे से।

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