Friday, March 30, 2007

कई दिनों बाद

आज मैं चाहती ही नही जागना।

अपनी इन सोई सी आँखो से,
आज नींद नही चुरानी,
पानी के झपटे नही मारने,
आज उलझे बालों को नही सुलझाना।

कई दिनों बाद आज सपनों ने सहलाया मुझे।

खाली- खाली से कमरे में,
आज तेरे चेहरे को देखा,
ताकते हुए उसी तरह,
जब तू मेरे पास सोया करता था।
मैं आंखें खोलू तो,
एक नर्म सी मुस्कुराहट से चूमता मुझे।
बाँहों में समेट के फ़िर से सो जात था।

आज वही गर्माहट महसूस कर रही हूँ...
जानती हूँ तू सिर्फ़ एक सपना है।
आज यह सपना ही तो नही तोड़ना।

आज कि सुबह नही देखनी है मुझे...
सपने सच करने चली हूँ आज...

1 comment:

delhidreams said...

kuch kaha ja sakta hai iske baad...

:)