बैठी हूँ समुंदर के कोने में,
साहिल कहते है जिसे |
कुछ करने को है नही,
बस दर्द को समेटा हुआ है मुट्ठी में ||
देख रही हूँ,
एक गोल सा जलता कोएला है,
पीले आसमान के canvas में, रंग भरता,
फ़िर जलाता,
जला-जला के रात कर गया वो कोएला,
और फ़िर बुझ गया समुंदर में ही डूब कर ||
आज रात खाली है,
और कमरे में एक मोम बत्ती पड़ी है कहीं,
आग नही है |
बस खाली कमरा है,
टेबल कुर्सियों से चेहरे लेके लोग खड़े हैं, जगह जगह|
बेढंगे से,
टूटी फूटी सी आँखों से ताकते,
अंधेरो में जलती आँखें,
तारे कहते है शायद उन्हें |
चमकती हैं,
पर रौशनी नही देती ||
चाँद के इंतज़ार में आज सब बेज़ार हो गए हैं |
चाँद नही उगेगा आज... ||
कल सुबह जलता कोएला हाथ में लेके,
फिर कोइ पैगम्बर आयेगा,
जलाके चला जाएगा सब फिर से ||
3 comments:
woh koyla roz ek cheez toh zaroor de jaata hai - chand ke aane ki umeed ... aur 28 din mein sirf 1 din chand nahi aata hai, baaki har din aata hai ...
why r u so blue these days my dear? what is going on???
clearly see a good enough influence of gulzaar... way to go..
ek din ek kaam karna raat ko mere kehne se
usse kehna thodi aur gehri ho jaye
aur sitaron ko kehna ke chamke jitna zor se chamak sakein
phir dekhna door tak
gehrai tak
jis bhi disha mein dekhogi
wahan taare dikhai denge
aur taare
dher saare taare
phir tum khud ko
akela nahi paogi
kya pata
kisi taare mein tumhe
meri seerat bhi nazar aaye
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