अब बस इन्तेज़ार है... जब तक हो सकता है इन्तेज़ार,
या जब तक गुज़र न जाए सारी रातें , चाँद भरी...
और दर्द थोड़ा सा न नम जाए ,
अकेले बैठे सड़को को तकती हूँ तब तक,
सड़को के ही किनारे करते हैं सब इन्तेज़ार,
जाने किसका?.. हर चेहरा एक सा लगता है...
उम्मीद से भरा,
उम्मीद के गुज़रने का इन्तेज़ार है अब...
दफना कर , उसी राह के कोने में...
इन्तेज़ार को सजा के आ जाउंगी...
चैन से सौंगी रात भर...
खामोशी ओढ़ कर....
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