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Aparna Mudi
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Monday, June 11, 2007
ulatpher
क्या करें जब ज़िन्दगी एक कविता बन जाए,
या फिर कविता ज़िन्दगी।
क्या उस कविता के शब्दो को पढे? टटोलें?
या समझे उसके दर्द को?
या फ़िर उसे किसी लौ पे रखकर उसे जलता देख मुस्कुराएँ ?
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