कुछ पुरानी यादें ताज़ा हों गईं आज।
दबा के रखी हुई थीं कहीं,
अख़बारों में लपेटी हुई, कुछ भूली बिसरी सी...
दबा के रखी हुई थीं कहीं,
अख़बारों में लपेटी हुई, कुछ भूली बिसरी सी...
आज निकाल के देखा तो थोड़ी धूल सी थी..
साफ़ किया, तो अब भी
कुछ धुन्धले से चेहरे नज़र आते है।
उन होठों पर टिकी हुई हसी,
अब भी खिल-खिला उठती है।
उसका प्यार से मेरे कन्धों पर रखा हुआ हाथ,
अब भी मुझको अपनी तरफ़ खीचता है।
शैतानी से भरी हुई आँखें
जैसे अभी वो मुझे चूम लेगा।
पुरानी तसवीरो, चिट्ठियोँ से भरे हुए बक्से,
टटोला तो कुछ पुरज़े हाथों में ही बिखर गए।
जोड़ने की कोशिश करती हूँ तो और बिखर जाते है।
मुट्ठी भर रेत हो जैसे।
पन्ने मेरी किताब के....
पुरानी तसवीरे, कुछ भीगे हुए खत,
एक सूखा हुआ गुलाब, बसों की टिकटें, खोयी हुई सी मुस्कान....
पुरानी तसवीरे, कुछ भीगे हुए खत,
एक सूखा हुआ गुलाब, बसों की टिकटें, खोयी हुई सी मुस्कान....
टटोला तो कुछ पुरज़े हाथों में ही बिखर गए।
जोड़ने की कोशिश करती हूँ तो और बिखर जाते है।
मुट्ठी भर रेत हो जैसे।
पन्ने मेरी किताब के....
पुरानी तसवीरे, कुछ भीगे हुए खत,
एक सूखा हुआ गुलाब, बसों की टिकटें, खोयी हुई सी मुस्कान....
पुरानी तसवीरे, कुछ भीगे हुए खत,
एक सूखा हुआ गुलाब, बसों की टिकटें, खोयी हुई सी मुस्कान....
2 comments:
gud for u,
waise bhi kuch aur to nahi tha karne ko...
just pulling ur heavy legs ;)
dee is in haridwar, m missing her:(
Nice idea with this site its better than most of the rubbish I come across.
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