सावन आ आकर
छत के दरवाज़े खट-खाटाते हैं बस|
थोडा सा गन्दा पानी
सीढियों पर छोर जाते हैं|
मुंडेरों पर बरसो से जमी हुई काई को
थोडा और काला कर जाते हैं |
जो सूखती नहीं,
इस शुष्क, तेज़ दोपहरी में भी|
फ़िर बस acid डालना पड़ता है,
पुराने चेहरों पर
सब पुराने धब्बे मिटाने पड़ते हैं,
हाथ जला कर ...
थोडा पीकर
3 comments:
kyon?
koi aur tareeka nahi zindagi jeene ka kya?
hmmm
the other way is runnning away...
but it isnt about life... its just some situations....
i have a queation,,, why am i explaining poetry to YOU.... i dont have to tell you are adi
i loved this one. Esp the one abt acid and hands..
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