Tuesday, November 10, 2009

gopal

बहुत साल पहले,
वृन्दावन की गलियों में,
एक दुकान के  ताक पर,
चढा बैठा था!

ठीक उसही तरह ताक-झांक करता,
जैसे माखन चुराने के लिए,
वो औरो को sentry duty पर
लगाया करता था, बरसो पहले|

मैंने कहा, 
"मुझे चाहिए,
खूब ख्याल रखूँगी इसका,
अपने बच्चे सा!"
"रोज़ सुबह उठाऊंगी, नहालाउंगी, बताशे खिलाऊँगी,
हर साल नए कपड़े दूँगी,
इतना प्यार तो शायद
यशोदा ने भी न किया होगा |"

एक सिंघासन लिया,
कुछ कपड़े,
सोने के लिए 
एक छोटा सा,
गोटे वाला सिरहाना|

अपनी आँखों से तब बोलता था,
नए घर में जाने कि ख़ुशी, 
छलक के गिरती थी|

शाम को बाती और धूप की सुगंध में,
सूरज के साथ वो भी सो जाता,
अपने नन्हे से बिछोने में,
सुबह उठता था,
शंख कि आवाज़ के साथ |

नखरे सहती थी इसके,
कभी नए कपड़े, 
तो कभी सर्दी में रात को चादर ओढ़ाना,
कभी  चॉकलेट, मिठाईयों कि फरमाईश |

आज दस साल हो गए इस बात को!
अब रात दर रात, 
इंतज़ार करता रहता है |
कभी तो देखूं इसकी तरफ,
कभी पूछ लूं कि सब कैसा है |
कभी रोऊँ इसके पास बैठकर, 
बार बार पूछूं कि कब मुझको भी,
अपने नन्हे हाथों से लिपट लेगा |
कब थामेगा मेरा हाथ भी अपने जादू भरे प्यार से |

अब उसके नखरे मुझे 
अपने बनाये हुए illusions लगते हैं |
उसके लिए मेरा प्यार एक व्यर्थ चेष्टा |
उसकी वो रोशन आँखें,
बस वृन्दावन कि रौशनी का खेल |

शायद बहुत देर हो गयी है,
शायद अब मुझे आस नहीं,
यशोदा सा,
वो मुझे भी 'माँ' कहे,
शायद मैं उसे कभी इतना प्यार कर ही न पायी |

पर जब किया था,
पूरे मन से किया था,
सबसे ज्यादा,
एक छोटे बच्चे सा |

बस ये नहीं समझी थी,
कि वो मुझसे भी छोटा है |
अभी तक अपनी जिद पे अड़ा  है |

2 comments:

ankurpandey said...

आपकी कविताओं में बात तो है!
कहीं कुछ औघड़ भी है, पर वैसा जैसे कि पानी तो मज़ेदार हो पर बताशे कहीं-कहीं टूटे रह गए हों.

पानी का जायका तो फिर भी कहीं नहीं गया... बात तो है.

Aparna Mudi said...

shukriya satyavrat!!!
nice to see someone actually still reads my blogs!!
:D
your comment really made me feel great!