Thursday, March 04, 2010

Kaayi

सावन आ आकर
छत के दरवाज़े खट-खाटाते हैं बस|
थोडा सा गन्दा पानी 
सीढियों पर छोर जाते हैं|
मुंडेरों पर बरसो से जमी हुई काई को
थोडा और काला कर जाते हैं |
जो सूखती नहीं,
इस शुष्क, तेज़ दोपहरी में भी|
फ़िर बस acid डालना पड़ता है,
पुराने चेहरों पर
सब पुराने धब्बे मिटाने पड़ते हैं,
हाथ जला कर ...
थोडा पीकर

3 comments:

delhidreams said...

kyon?
koi aur tareeka nahi zindagi jeene ka kya?

Aparna Mudi said...

hmmm
the other way is runnning away...
but it isnt about life... its just some situations....

i have a queation,,, why am i explaining poetry to YOU.... i dont have to tell you are adi

How do we know said...

i loved this one. Esp the one abt acid and hands..